बदायूँ : जिला उद्यान अधिकारी आरएन वर्मा ने अवगत कराया है कि प्रदेश में आलू के अच्छे उत्पादन हेतु सम-सामयिक महत्व के कीट/व्याधियों का उचित समय पर नियंत्रण नितान्त आवश्यक है। आलू की फसल अगेती व पिछेली झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती है। प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूंदा-बांदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहुॅचती है। ऐसी परिस्थितियों में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उ0प्र0 लखनऊ द्वारा आलू उत्पादकों को सलाह दी जाती है कि आलू की अच्छी पैदावार सुनिश्चित करने हेतु रक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये।
पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियॉ सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है, जो तीव्रगति से फैलती हैं। पत्तियां पर भूरे काले रंग के जलीय धब्बे बनते हैं तथा पत्तियों के निचली सतह पर रूई की तरह फफूॅद दिखाई देती है। बदलीयुक्त 80 प्रतिशत से अधिक आर्द्र वातावरण एवं 10-20 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और 2 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है। अगेती झुलसा से पत्तियॉ बीच से झुलसना प्रारम्भ होती है।
आलू की फसल को अगेती व पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिये जिंक मैगनीज कार्बामेट 2.0 से 2.5 कि0ग्रा0 को 800-1000 ली0 पानी में अथवा मैंकोजेब 2 से 2.5 कि0ग्रा0 800 से 1000 ली0 पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जाये तथा आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर दूसरा छिड़काव कॉपर आक्सीक्लोराइड 2.5 से 3.0 कि0ग्रा0 अथवा जिंक मैगनीज कार्बामेट 2.0 से 2.5 कि0ग्रा0 तथा माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण के लिये दूसरे छिड़काव में फफूॅदीनाशक के साथ कीट नाशक जैसे डायमेथोएट 1.0 ली0 प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिये।
जिन खेतों में अगेती व पिछेली झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो, तो ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिये अन्तःग्राही (सिस्टेमिक) फफूॅद नाशक मेटालेक्जिल युक्त रसायन 2.5 क्रि0ग्रा0 अथवा साईमोक्जेनिल युक्त फफूॅदनाशक 3.0 क्रि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।
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