कीचक: ३ - कुचेष्टा - FULLSKY NEWS

FULLSKY NEWS - India's most trusted Autobloging Blogspot For Latest Breaking News And Headlines

Breaking

Sunday, December 22, 2019

कीचक: ३ - कुचेष्टा

पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस प्रकार कीचक ने विराट देश का सेनापति बनते ही सारे शत्रुओं को अपने बल से पीछे खदेड़ दिया। उसके शौर्य से विराट नरेश भी बड़े प्रसन्न हुए और उसे प्रधान सेनापति बना दिया। किन्तु उन्हें ये नहीं पता था कि कीचक को इतने अधिकार देने पर उस पर नियंत्रण पाना कठिन हो जाएगा। यही हुआ और और विराट नगर का शासन कीचक ने अप्रत्यक्ष रूप से अपने हाथों में ले लिया। अब आगे... 

पांडवों का वनवास समाप्त हो चुका था और वे अपने अज्ञातवास के लिए किसी उपयुक्त राज्य की खोज में थे। अंत में सभी ने ये निश्चय किया कि अज्ञातवास का आखिरी एक वर्ष वे विराट नगर में गुजारें। वे सभी विराट देश पधारे और अलग-अलग नामों से विराट नरेश के यहाँ काम करने लगे। शीघ्र ही वे सभी अपने कौशल से राजा और रानी के विश्वासपात्र बन गए। 

युधिष्ठिर कंक नाम से विराट के मंत्री बने। भीम की पाक कला अद्भुत थी और वे वल्लभ नाम से राज  रसोइया बने। यदा-कदा वे विराट नगर के मल्लों को पराजित कर नरेश को प्रसन्न भी कर दिया करते थे। उर्वशी द्वारा अर्जुन को मिला श्राप यहाँ काम आया और वे बृहन्नला नामक क्लीव का रूप लेकर विराटराज की पुत्री उत्तरा को नृत्य सिखाने लगे। नकुल ग्रन्थिक के नाम से राजा की अश्वशाला के अध्यक्ष बने तो सहदेव तन्तिपाल (अरिष्टनेमि) के नाम से राजा की गौशाला सँभालने लगे। द्रौपदी सैरन्ध्री नाम से रानी सुदेष्णा की दासी के रूप में काम करने लगी।

एक बार कीचक अपनी बहन सुदेष्णा से मिलने उसके महल में आया। उसी समय उसकी नजर द्रौपदी पर पड़ी। ऐसा अप्रतिम सौंदर्य देख कर कीचक अपने होश खो बैठा। उसके महल में असंख्य स्त्रियाँ थी किन्तु किसी की भी तुलना द्रौपदी से नहीं की जा सकती थी। उसने अपनी बहन से कहा - "सुदेष्णा! तुम्हारी ये दासी तो सौंदर्य में अप्सराओं को मात करने वाली है। ये यहाँ दासी का कार्य क्यों कर रही है? तुम इसे मेरी सेवा में भेज दो।"

तब सुदेष्णा ने द्रौपदी से कहा कि वो मदिरा लेकर कीचक के भवन में जाये। इससे द्रौपदी बड़ी घबराई। उसने महारानी से कह रखा था कि उसके ५ गन्धर्व पति हैं। उसने फिर से सुदेष्णा से कहा कि वो ब्याहता स्त्री है और इस प्रकार किसी पुरुष के कक्ष में जाना उचित नहीं है। किन्तु सुदेष्णा ने उसे समझा-बुझा कर कीचक के पास जाने को कहा। द्रौपदी उस समय दासी थी और रानी की आज्ञा का उलंघन नहीं कर सकती थी अतः उसे कीचक के पास जाना पड़ा।

उसे देख कर कीचक ने उससे बड़ी मधुर बातें कर उसे अपने अनुकूल करना चाहा किन्तु द्रौपदी उसका आशय समझ गयी। वो तत्काल उसके कक्ष से भाग आयी। उधर कीचक द्रौपदी के कारण अपना सुध-बुध खो बैठा। वो किसी भी मूल्य पर उसे प्राप्त करना चाहता था। वो एक बार फिर सुदेष्णा के पास गया और उससे कहा कि वो सैरन्ध्री को अपनी पटरानी बनाना चाहता है। सुदेष्णा से सोचा कि इससे तो सैरन्ध्री का भाग्य खुल जाएगा और इसीलिए उसने एक बार पुनः द्रौपदी को कीचक के पास जाने की आज्ञा दी। द्रौपदी ने उसे बहुत समझाया किन्तु अंततः एक बार फिर उसे कीचक के पास जाना पड़ा।

इस बार कीचक अपनी सारी मर्यादा पार कर गया और द्रौपदी को बलात प्राप्त करने का प्रयास किया। द्रौपदी किसी प्रकार अपने प्राण बचा कर सीधा महाराज विराट के दरबार पहुँची और उसके पीछे-पीछे कीचक भी वहाँ पहुँचा। सभी सभासदों और विराटराज के समक्ष ही कीचक ने सैरन्ध्री के बाल पकड़ कर उसे भूमि पर गिरा दिया। युधिष्ठिर ये देख कर बड़े क्रोधित हुए किन्तु उन्होंने जल्द ही स्वयं को संभाला। उसी समय भीम भी किसी कार्यवश दरबार पहुँचे। द्रौपदी को इस स्थिति में देख कर वे कीचक के वध को बढे ही थे कि युधिष्ठिर ने उन्हें इशारे से शांत करवा दिया।

विराटराज ने कीचक से उस धृष्टता का कारण पूछा तो वो निर्लज्ज की भांति हँसते हुए बोला कि उसे सैरन्ध्री को प्राप्त करने से अब कोई नहीं रोक सकता है। विराटराज ने स्वयं को इतना दुर्बल कभी नहीं पाया था। तब कंक रुपी युधिष्ठिर ने कीचक और राजा को धर्म का ज्ञान देते हुए इस अधर्म को रोकने को कहा। उनकी बात सुनकर विराटराज ने कीचक को वहाँ से जाने की आज्ञा दी। सभी सभासदों के बीच कीचक को राजाज्ञा का उलंघन करना उचित नहीं लगा और वो वहाँ से चला गया। किन्तु जाने से पहले वो ये चेतावनी दे गया कि वो सैरन्ध्री को प्राप्त कर के ही रहेगा।

...शेष


from धर्म संसार | भारत का पहला धार्मिक ब्लॉग https://ift.tt/2tJ7G2p
via IFTTT

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Pages