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Friday, July 31, 2020

बीस हजार करोड़ का बिज़नेस, चालीस करोड़ गरीबों को खाना और पचास लाख लोगों को मिलता है बकरीद से रोज़गार

 

अफसर अली खान ने समझायी बकरीद के त्योहार की इकोनॉमिक्स

बदायूँ ।

समाजसेवी अफसर अली खान ने अपनी इकोनॉमिक्स के आधार पर जानकारी देते हुये बताया कि भारत 130 करोड़ की जनसंख्या के साथ एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यह 20 करोड़ मुसलमानो का घर है। आने वाले 1 अगस्त को देश में बकरीद मनाई जाएगी। इस्लाम धर्म में यह त्योहार हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। अल्लाह के हुक़्म को मानते हुए हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए थे। हालांकि, ऐसा होने से पहले अल्लाह ने कुर्बानी के लिए एक मेमना दुंमवा भेज दिया था। इसी वजह से इस त्योहार को बकरीद के तौर पर जाना जाता है।
यह त्यौहार सिर्फ मुसलमानों के लियें ही महत्वपूर्ण नही है बल्कि इससे देश को बहुत आर्थिक लाभ पहुँचता है आज हम बकरीद की इकोनॉमिक्स ही समझाने की कोशिश करेंगे।
देश में मुसलमानो की संख्या बीस करोड़ है जिसमे से लगभग दो करोड़ लोग हैं जो कुर्बानी करवाते हैं। ऐसा इसलियें है क्योंकि अल्लाह ने सिर्फ उनको ही कुर्बानी का हुक्म दिया है जो आर्थिक रूप से ठीक हों। इसके लिये इस्लाम में अच्छी तरह से बताया है कि कितना आर्थिक रूप से मज़बूत इंसान क़ुरबानी करा सकता है।
आज के दौर में एक बकरे की कीमत लगभग पाँच हजार रुपये से लेकर पच्चीस हजार रुपये तक होती है हालांकि लोग अपनी हैसियत के हिसाब से इससे भी कई गुना आथिक कीमत के बकरे खरीदते हैं। आधे लोग बड़े जानवर जैसे भैंस , पढढा , ऊट आदि हलाल जानबरो की भी कुर्बानी कराते है जिसमें सात हिस्से होते हैं और उसे सात लोग मिलकर भी कुर्बानी करते हैं। जिसमें एक हिस्से की कीमत भी लगभग तीन हजार रुपये से दस हजार रुपये तक की होती है।
यानी देश में दस हज़ार करोड़ से लेकर पच्चीस हज़ार करोड़ रुपये तक के जानवरो खरीद फरोख्त होती है।
यह सारा सारा पैसा किसी किसी और मुल्क में न जाकर देश के किसानों को ही जाता है। और इससे बीस लाख परिवारों को रोज़गार भी मिलता है।
कुर्बानी करने के लियें कुरैशी (काटनेवाला) की भी ज़रूरत होती है इससे चालीस लाख कुरैशियों को भी रोज़गार मिलता। बकरे की कुर्बानी करने के लगभग पाँच सौ से एक हजार रुपये तक जाते हैं।
और बडे जानबर की कुर्बानी करने के भी तीन हजार से आठ हजार रुपये तक जाते हैं। इसमें भी लगभग पाँच सौ करोड़ रुपए का लेन देन होता है जो अर्थव्यवस्था को बहुत मज़बूत करता है
सिर्फ इतना ही नही बल्कि जानवरों को ईद से कुछ दिन पहले सेवा करने के लियें खरीदा जाता है और उनके खान पान का भी ध्यान रखा जाता है इससे चारा व्यापारियों को बहुत लाभ होता है क्योंकि चारा बाज़ार से ही खरीदकर खिलाया जाता है। इसके इलावा भी कई छोटे बड़े व्यापारों को भी इससे मुनाफा होता है।
क़ुर्बानी के बाद जानवरोंकी खाल भी डोनेट करदी जाती है यह खाले लैदर का सामान बनाने में ली जाती हैं इससे लैदर इंडस्ट्री को भी बहुत फायदा होता है।
क़ुरबानी के बाद इस्लाम में हुक़्म है कि गोश्त गरीबों में बाँटा जाए। जिससे लगभग चालीस करोड़ लोगों का कई दिनों तक पेट भरता है आम दिनों में बकरे के गोश्त की कीमतों के कारण इन गरीबो को ऐसा खाना नसीब नही होता है।
मगर आजकल हमे सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है कि कुछ असमाजिक तत्व मुसलमान त्योहार होने के कारण बकरीद का विरोध करते हैं उनको इससे करोड़ो परिवारों को पहुंचने वाले लाभ के बारे में बिल्कुल अंदाज़ा नही होता है। हमे सभी की आस्था का सम्मान करना चाहियें और किसी की आस्था पर गलत टिप्पणियां करने से बचना चाहियें।

*अफ़जल अज़ीज़ खान की रिपोर्ट



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