ज्योतिष शास्त्र में रत्न पहनने के पूर्व कई निर्देश दिए गए हैं। रत्नों में मुख्यतः नौ ही रत्न ज्यादा पहने जाते हैं। सूर्य के लिए माणिक, चन्द्र के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद, केतु के लिए लहसुनियां।
पुखराज तर्जनी में ही क्यों पहनने की सलाह देते हैं, क्योंकि कोई भी व्यक्ति धमकी, निर्देश आदि देता है तो इसी अंगुली से देता है। यही अंगुली लड़ाई का भी कारण बनती है, तो होशियार करने के लिए भी काम आती है। इसलिए गुरु का रत्न पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है। पुखराज पहनने से उस जातक में गंभीरता आती है। साथ ही वह अन्याय के प्रति सजग हो जाता है। यह धर्म-कर्म में भी आस्था जगाता है। गुरु का प्रभाव बढ़ाने और उसके अशुभ प्रभाव को खत्म करने के लिए पुखराज पहना जाता है।
अधिकांश व्यक्ति पुखराज पहनते हैं इनमें प्रमुख राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, न्यायाधीश, मंत्री, राजनायक, अभिनेता आदि की अंगुली में देखा जा सकता है। पुखराज के साथ माणिक पहना जाए तो अति शुभ फल भी मिल सकते हैं। मध्यमा में नीलम धारण करते है व इसके अलावा कोई भी रत्न नहीं पहनना चाहिए अन्यथा शुभ परिणाम नहीं मिलते। इस अंगुली पर ही आकर भाग्य रेखा खत्म होती है जिनकी भाग्य रेखा न हो वे किसी जानकार से सलाह लेकर नीलम पहन कर लाभ पा सकते हैं।
नीलम शनि के शुभ फल देने में सहायक होता है, यह अक्सर लोहे के व्यवसायी, प्रशासनिक व्यक्ति, राजनेता भी पहने देखे जा सकते है। इसके बारे में यह कहावत है कि यह रत्न तुरन्त फलदायी होता है व इसका शुभ या अशुभ परिणाम शीध्र देने में सक्षम हैं। यह रत्न बगैर किसी जानकार की सलाह के नहीं पहनना चाहिए।
माणिक अनामिका में पहना जाता है, यह सूर्य का रत्न है। बर्मा का माणिक अधिक महंगा होता है, वैसे आजकल कई नकली माणिक भी बर्मा का कहकर बेच देते हैं। बर्मा का माणिक अनार के दाने के समान होता है। इसके पहनने से प्रशासनिक, प्रभाव में वृद्धि व शत्रुओं को परास्त करने में भी सक्षम है। इसे भी नेता राजनीति से संबंध रखने वाले, उच्च पदाधिकारी, न्यायाधीश, कलेक्टर आदि की अंगुली में देखा जा सकता हैं।
कनिष्का अंगुली में पन्ना पहना जाता है। यह बौधिक गुणों को बढ़ाता है, जिसे बिजनेसमैन ज्यादा पहनते हैं। इसको पहनने से पत्रकारिता, सेल्समैन, प्रकाशन, दिमागी कार्य करने वाले, कलाकार, वाकपटु व्यक्ति भी पहनते हैं।
हीरा, मोती, मूँगा, गोमेद व लहसुनियां। मूंगा ऊर्जा बढ़ाने वाला, साहस, महत्वाकांक्षा में वृद्धि व शत्रुओं पर प्रभाव डालने वाला होता है। इसके मित्र गुरु, सूर्य हैं व मकर में उच्च का होने से इसे मध्यमा, तर्जनी व अनामिका में धारण किया जाता है। इसको अक्सर राजनीतिज्ञ, पुलिस प्रशासन से जुडे व्यक्ति व उच्च पदाधिकारी, भूमि से संबंधित व्यक्तिगण, बिल्डर, कॉलोनाइजर आदि द्वारा पहना हुआ देखा जा सकता है। इसे माणिक, पुखराज के साथ भी धारण कर सकते हैं। जिन्हें गुस्सा अधिक आता हो वे इस रत्न को ना पहने। मूंगे को मोती के साथ भी या संयुक्त रत्न की अंगूठी पहनी जा सकती है।
कनिष्का अंगुली में मोती पहनना शुभ फलदायी रहता है, क्योंकि कनिष्का अंगुली के ठीक नीचे चन्द्र पर्वत है। इस कारण चन्द्र के अशुभ परिणाम व शुभत्व के लिए शुभ रहता है। उसे अनामिका में नहीं पहनना चाहिए। गुरु की अंगुली तर्जनी में भी पहन सकते हैं। यह रत्न मन को अशान्ति से बचाता है व जिन्हें ज्यादा गुस्सा आता हो, जो जल कार्य से जुड़े व्यक्ति, दूध व्यवसायी, सफेद वस्तुओं के व्यवसाय से जुडे़ व्यक्ति भी पहन सकते हैं। इसे पुखराज के साथ व माणिक के साथ भी पहना जा सकता है।
हीरा रत्न अत्यन्त महंगा व दिखने में सुन्दर होता है। इसे गुरु की अंगुली तर्जनी में पहनते हैं, क्योंकि तर्जनी अंगुली के ठीक नीचे शुक्र पर्वत होता है। शुक्र के अशुभ प्रभाव को नष्ट कर शुभ फल हेतु हीरा पहनते हैं। इसे कलाकार, सौंदर्य प्रसाधन से जुडे़ व्यक्ति, प्रेमी, इंजीनियर, चिकित्सक, कलात्मक वस्तुओं के विक्रेता आदि पहन सकते हैं।
राहु का रत्न गोमेद कनिष्का में पहनना चाहिए क्योंकि मिथुन राशि में उच्च का होने से बुध की अंगुली कनिष्का में पहनना शुभ फलदायी रहता है। इसे राजनीति, जासूसी, जुआ-सट्टा, तंत्र-मंत्र से जुडे़ व्यक्ति आदि पहनते हैं। यह राहु के अशुभ प्रभाव को दूर करता है।
लहसुनियां रत्न तर्जनी में पहनना चाहिए क्योंकि गुरु की राशि धनु में उच्च का होता है। यह ऊंचाइयां प्रदान करता है व शत्रुहन्ता होता है। इस रत्न को हीरे के साथ कभी भी नहीं पहनना चाहिए, क्योंकि इससे बार-बार दुर्घटना के योग बनता रहेगा।
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