hariyali amavasya 28 july 2022
आज श्रावण मास की अमावस्या है, इसे श्रावणी तथा हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya 2022) के नाम से जाना जाता हैं। इस अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए पितृ कर्म, तर्पण, पिंडदान तथा दान-धर्म करने का बहुत महत्व है।
धार्मिक और प्राकृतिक महत्व की वजह से सावन माह की हरियाली अमावस्या बहुत लोकप्रिय है। इस दिन शुभ कार्य करने से जीवन में खुशहाली आती है तथा नदी स्नान एवं दान तथा पितरों के निमित्त श्राद्ध करने की परंपरा के चलते पितृ तर्पण, धूप-ध्यान, पूजन, अर्घ्य आदि कार्य करने से शिव जी प्रसन्न होकर विशेष वरदान देते हैं।
यह दिन जहां वृक्षों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए जाना जाता है, वहीं इस दिन पितरों का पिंडदान और अन्य दान-पुण्य संबंधी कार्य करने से जीवन में खुशहाली आती हैं। इस बार हरियाली अमावस्या गुरुवार के दिन होने के कारण बेसन, बेसन से बनी खाद्य वस्तुएं तथा बेसन के लड्डू दान करने का विशेष महत्व है। इसके अलावा निम्न में से कुछ न कुछ सामग्री का दान अवश्य करें।
दान सामग्री-
कंबल,
गरम वस्त्र,
काले कपड़े,
तेल,
तिल,
सूखी लकड़ी,
चप्पल-जूते,
पीले वस्त्रों का दान,
चने की दाल,
बेसन से बने व्यंजन,
आदि चीजों का दान करने का विशेष महत्व है।
उपाय-
1. गुरुवार के दिन अमावस्या पड़ने के कारण आज के खास योग में शिव जी के साथ-साथ गुरु ग्रह का विशेष पूजन करें तथा किसी भी मंदिर में शिवलिंग पर चने की दाल अवश्य चढ़ाएं, साथ ही दीपक जला कर बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
2. आज केसर मिश्रित दूध से भगवान श्री विष्णु का अभिषेक करें तथा पीपल का पौधा लगाएं। साथ ही पितरों के नाम से किसी भी वृक्ष का पौधा भी अवश्य लगाएं।
3. अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आज के दिन सुहागिन महिलाएं श्रृंगार की सामग्री अवश्य वितरित करें।
श्रावण हरियाली अमावस्या के मुहूर्त-hariyali amavasya muhurat
- हरियाली अमावस्या तिथि का आरंभ- 27 जुलाई, बुधवार, रात्रि 09.14 मिनट से
- अमावस्या तिथि का समापन: 28 जुलाई, गुरुवार, रात्रि 11.24 मिनट पर।
- आज गुरु पूर्णा सिद्ध योग सूर्योदय से रात्रि 10.11 मिनट तक।
- सर्वार्थ सिद्धि योग 07.12 मिनट तक।
- गुरु-पुष्य अमृत सिद्धि योग 07.12 मिनट से।
हरियाली अमावस्या के मंत्र- hariyali amavasya mantra
1. ॐ नमः शिवाय या ॐ नमो भगवते रुद्राय।
2. ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवै नम:।
3. ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ।
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