बदायूँ: नव वर्ष पर साहित्यिक संस्था ‘शब्दिता’ के तत्वाधान में काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ!
गोष्ठी में सभी ने सर्दीली शाम को अपनी भावात्मक अभिव्यक्ति की शॉल पहना दी!
सरस्वती वंदना से प्रारम्भ हुई गोष्ठी में जो काव्यमय ध्वनियाँ ध्वनित हुईं उससे इस काव्यमयी समागम को ऊँचाइयाँ मिलीं!
शाब्दिता की वरिष्ठ सदस्य रमा भट्टाचार्य ने इस अवसर पर एक हास्य रचना प्रस्तुत कर सबको हँसने पर मजबूर कर दिया
डॉ कमला माहेश्वरी ने कहा-
शब्द खेल बन गये कि शब्द बज़्म बन गये ।
शब्दिता के ऊॅऺ नाद , शब्द ब्रह्म बन गये ।।
शब्द वाण ही चुभे थे ,दुर्योधन हिया प्रखर ।
चौपड़ी विसात शब्द ,युद्ध कर्म बन गये
डॉ प्रतिभा मिश्रा ने कहा -,क्या कहूं कैसे कहूँ अब कुछ कहा जाता नहीं!
मधु राकेश ने कविता पाठ करते हुए कहा –
न इससे काम चलेगा ,न उससे काम चलेगा,चलेगा तो बस अपने आप से काम चलेगा!
उषा किरण रस्तोगी ने अपनी कविता के माध्यम से नव वर्ष का स्वागत किया-
नववर्ष के स्वागत में हैं आये हम सभी,आओ मनाएं साल नया मिल के हम सभी!
श्रीमती मधु शर्मा ने सोनरूपा को समर्पित एक कविता पढ़ी, उन्होंने कहा- दिलों में बस जाऊँ मैं ऐसी शख़्सियत हूँ ,सभी को प्रेरणा दूँ ऐसी मूरत हूँ!
अंजलि शर्मा ने अपने नारी जीवन की विवशता को कविता में पिरोते हुए कहा-जीवन जीना बहुत सहज है,सुनना अच्छा लगता है पर एक डग को भरने में सौ बार तो मरना पड़ता है!
गायत्री प्रियदर्शनी ने वर्तमान समय की विद्रूपताओं को अपनी कविता का विषय बनाते हुए कहा-घुल रहा है फ़िज़ा में कसैला धुँआ,
घुट रही हैं हवाओं में साँसे यहाँ
इस अवसर पर शब्दिता द्वारा गीत और ग़ज़ल को अपनी लेखनी से समृद्ध करते आ रहे एवं सुमधुर कंठ से अपनी रचनाओं को स्वर देने वाले जनपद बदायूँ के दो सिद्धहस्त रचनाकार श्री कुमार आशीष एवं अभिषेक अनन्त को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया था!उन्हें संस्था द्वारा सम्मानित भी किया गया!
अभिषेक अनंत ने गीत पढ़ते हुए कहा-प्रेम का आकाश विस्तृत कामना के पँख लेकर पार जाना चाहता हूँ
जानता हूँ है मिलन देता विरह का ताप लेकिन प्यार पाना चाहता हूँ
ग़ज़लकार कुमार आशीष ने कहा-ज़िन्दगी कुछ यूं धँसी है उलझनों के बीच में
नींद ज्यों आधी अधूरी करवटों के बीच में
अंत में गोष्ठी की संचालक एवं संयोजक कर रहीं सोनरूपा ने अपनी ग़ज़ल का पाठ करते हुए कहा-
प्यार वफ़ा से अपने पन से रिश्तेदारी ख़त्म न हो
औरों के सुख दुख में अपनी साझेदारी ख़त्म न हो
माना कुदरत की हर शय का ज़िम्मा है उस पर लेकिन
अपने अपने हिस्से की भी ज़िम्मेदारी ख़त्म न हो
गोष्ठी में श्रीमती कुसुम रस्तोगी,मंजुल शंखधार एवं सुषमा भट्टाचार्य की भी सक्रिय उपस्थिति रही!
अंत में सोनरूपा विशाल ने सभी को आभार ज्ञापित करते हुए कहा- ऐसी बैठकी बहुत सृजनात्मक,सकारात्मक,प्रेरणात्
अगली गोष्ठी के लिए कुछ सदस्यों ने अपनी रुचि के अनुसार कुछ कविता,कहानी,उपन्यास संग्रह चुनी जिन पर अगली गोष्ठी में चर्चा की जाएगी!
from Sun Time News http://bit.ly/2CRQmu7
via IFTTT
No comments:
Post a Comment